Gogamedi Mela 2025: हरियाणा की सीमा से सटे राजस्थान के नोहर में स्थित गोगामेड़ी मेला, उत्तर भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। Gogamedi Mela लोकदेवता गोगाजी की याद में आयोजित होता है और सांप्रदायिक सद्भावना का प्रतीक माना जाता है। पशुपालन, गोपालन, डेयरी एवं देवस्थान विभाग के कैबिनेट मंत्री जोराराम कुमावत ने गोगामेड़ी मेले का शुभारंभ किया। राष्ट्रीय ध्वजारोहण के साथ शुरू हुआ यह मेला, 40 लाख से अधिक श्रद्धालुओं को आकर्षित करने की उम्मीद है।
इस ब्लॉग में हम Gogamedi Mela के महत्व, इस साल के आयोजन की विशेषताओं, और श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण जानकारी साझा करेंगे।
गोगामेड़ी मेला कहाँ लगता है | Gogamedi Mela 2025
भादरा विधानसभा क्षेत्र के गोगामेड़ी, जिसे धुरमेड़ी भी कहते हैं, में भादों कृष्णपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला भरता है। गोरख टीले पर अष्टमी की रात्रि तक यात्रियों का पड़ाव रहता है, और नवमीं की प्रातः जैसे ही सूर्योदय होता है, हजारों श्रद्धालुओं की एक विशाल लहर गोगामेड़ी की ओर बह निकलती है। गोगाजी की समाधि के दर्शन की तीव्र उत्कंठा से भरे इन श्रद्धालुओं को व्यवस्थित दर्शन कराने के लिए, एक लंबी पंक्ति बनाई जाती है, जो गोरख टीले से लेकर गोगामेड़ी के मुख्य द्वार तक फैली होती है। यह पंक्ति, गोगाजी की कृपा पाने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति का प्रतीक है।
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गोगामेड़ी मेला कब है 2025 | Gogamedi Mela Kab Hai 2025
सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक, उत्तरी भारत का सबसे बड़ा जाहरवीर गोगाजी का गोगामेड़ी मेला इस वर्ष 19 अगस्त से 18 सितंबर 2025 तक आयोजित होगा। एक महीने तक चलने वाले इस विशाल मेले में लाखों श्रद्धालुओं की आवाजाही होगी। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएँ प्रदान करने के लिए, जिला कलक्टर काना राम ने शुक्रवार को संबंधित अधिकारियों की एक बैठक बुलाई। बैठक में पानी, बिजली और आवागमन की उचित व्यवस्था सुनिश्चित करने पर विशेष जोर दिया गया। मेले के दौरान सुरक्षा व्यवस्था और स्वच्छता के लिए भी आवश्यक कदम उठाने पर चर्चा की गई।
जहारवीर बाबा कौन थे | Who was Jaharveer Baba
गोगाजी, गुरु गोरखनाथ के परम शिष्य, राजस्थान के चुरू जिले के ददरेवा गाँव में विक्रम संवत 1003 में जन्मे थे। ददरेवा, गोगाजी के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है और यह सभी धर्मों और सम्प्रदायों के लिए एक पवित्र स्थल है। गोगाजी, हिंदू, मुस्लिम और सिख समुदायों में समान रूप से पूजनीय हैं, जो उन्हें एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के रूप में स्थापित करते हैं। मुस्लिम समुदाय उन्हें “गोगामेड़ी जाहर पीर” के नाम से जानते हैं और उनके मजार पर मत्था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का एक प्रमाण है।
गोगाजी का जन्म चौहान वंश के राजा जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से हुआ था। गुरु गोरखनाथ ने बाछल देवी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। एक किवदंती के अनुसार, बाछल देवी की बहन काछल देवी ने अनजाने में गुरु गोरखनाथ का प्रसाद ग्रहण कर लिया, जिससे वह गर्भवती हो गई। बाछल देवी ने गुरु गोरखनाथ से फिर से प्रार्थना की, जिसके बाद गुरु ने उन्हें एक गुगल फल दिया। इस फल को खाने से बाछल देवी गर्भवती हुईं और भादो माह की नवमी को गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से ही उनका नाम गोगाजी पड़ा।
गोगामेड़ी श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण जानकारी
- गोगामेड़ी मेले में जाने के लिए नोहर रेलवे स्टेशन या सड़क मार्ग से पहुँचा जा सकता है।
- मेले के दौरान, नोहर और आसपास के क्षेत्रों में कई होटल और धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं।
- मेले में कई स्टॉल हैं जहाँ स्थानीय व्यंजन और पेय पदार्थ उपलब्ध हैं।
- मेले में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी रखी जाती है। पुलिस और प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
- गोगामेड़ी मेला पशु मेले के लिए भी जाना जाता है। यहां देश भर से पशु व्यापारी और किसान आते हैं।